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रविवार, 30 मई 2021

कोरोना से मरने वाले पत्रकारों के परिवारों को मिलेगी 10 लाख की आर्थिक मदद, हिंदी पत्रिकारिता दिवस पर CM योगी का ऐलान



 यूपी में कोरोना संक्रमण (UP Corona Infection) की वजह से जान गंवाने वाले पत्रकारों के परिवारों को सरकार की तरफ से 10 लाख रुपये की आर्थिक मदद दी (Financial help for Dead Journalist’s family) जाएगी. ये ऐलान सीएम योगी की तरफ से किया गया है. सीएम ने पत्रकारों के परिवारों को आर्थिक मदद देने की घोषणा हिंदी पत्रकारिता दिवस के मौके पर की है. अब प्रदेश में कोरोना की वजह से जान(Death Due to Corona)  गंवाने वाले पत्रकारों के परिवारों को राज्य सरकार 10 लाख रुपये की आर्थिक मदद दी जाएगी.

बतादें कि काम को प्राथमिकता पर रखते हुए कोरोना संक्रमण की वजह से अब तक देशभर में 300 से ज्यादा पत्रकारों की जान जा चुकी है. जिनमें सबसे ज्यादा 37 मौतें (7 Journalist Death In UP) यूपी में हुई हैं. इनमें फील्ड रिपोर्टिंग से लेकर ऑफिसों में काम करने वाले पत्रकार भी शामिल हैं. कोरोना संक्रमण की वजह से इनकी मौत हो गई थी.


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पत्रकारों को प्राथमिकता पर लग रही वैक्सीन

बतादें कि फ्रंटलाइन वर्कर्स की लिस्ट में शामिल करते हुए यूपी सरकार ने प्राथमिकता के आधार पर पत्रकारों और उनके परिवारों को कोरोना वैक्सीन लगवाए जाने की घोषणा की थी. इसके लिए अलग से बूथ बनाए गए थे. सरकार की कोशिश है कि फ्रंटलाइन वर्कर्स और उनके परिवार पूरी तरह से सुरक्षित रहें. ये लोग अपनी जान की परवाह न करते हुए महामारी के इस दौर में अपने काम को प्राथमिकता देते हुए लगातार जनता की सेवा कर रहे हैं.


हिंदी पत्रकारिता में 30 मई के दिन का विशेष महत्व है. इसी दिन आधुनिक भारत में हिंदी पत्रकारिता की नींव पड़ी थी. 30 मई 1926 को उदन्त मार्तण्ड नाम से पहला हिंदी भाषा का अखबार का प्रकाशित हुआ था. तब से 30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस अखबार के पहले प्रकाशक और संपादक पंडित जुगल किशोर शुक्ल थे. आज हिंदी पत्रकारिता के 195 साल पूरे हो गए हैं. 


बंगाल में उस समय अंग्रेजी, फारसी और बांग्ला में दूसरे अखबार प्रकाशित हो रहे थे लेकिन हिंदी में किसी अखबार का प्रकाशन नहीं हो रहा था. ऐसे समय में पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने कलकत्ता से उदन्त मार्तण्ड का प्रकाशन शुरू किया. साप्ताहिक अखबार के तौर पर इसका प्रकाशन शुरू हुआ. 


ऐसे हुई हिंदी के पहले अखबार की शुरुआत


पंडित जुगल किशोर शुक्ल मूल रूप से कानपुर के रहने वाले थे और वे कई भाषाओं के ज्ञाता थे. वे हिंदी के साथ-साथ संस्कृत, अंग्रेजी, फारसी और बांग्ला भाषा के भी जानकार थे. वे कानपुर की सदर दीवानी अदालत में प्रोसीडिंग रीडर के रूप में काम करते थे और वे वकील बन गए. इसके बाद उन्होंने उदन्त मार्तण्ड के प्रयास शुरू किए और अंततः उन्हें 19 फरवरी 1926 को गवर्नर जनरल से अखबार शुरू करने की अनुमति मिल गई.


आर्थिक तंगी का करना पड़ा सामना
उदन्त मार्तण्ड अखबार को 500 कॉपियों के साथ शुरू किया गया. बंगाल में हिंदी भाषा के जानकार कम होने के कारण इसे पर्याप्त पाठक नहीं मिल पाए. बंगाल से हिंदी भाषी राज्यों में अखबार को डाक से भेजने का खर्चा ज्यादा आता था. इसलिए पंडित जुगल किशोर शुक्ल से सरकार से डाक की दरों में कुछ छूट मांगी लेकिन तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने उनकी बात को नहीं माना.


79 अंक प्रकाशित होने के बाद करना पड़ा बंद  
इससे अखबार चलाने में आर्थिक कठनाई आने लगी. हर मंगलवार को यह अखबार पुस्तक के प्रारूप में प्रकाशित होता था और 79 अंक प्रकाशित होने के बाद आखिरकार 4 दिसंबर 1827 को उदन्त मार्तण्ड बंद हो गया. 

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