सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने बिल्डरों की मनमानी पर और सख्त नकेल कस दी है. जस्टिस उदय उमेश ललित और जस्टिस इंदु मलहोत्रा की पीठ ने अपने फैसले में साफ कहा कि बिल्डर का एकतरफा करार और मनमानी अब नहीं चलेगी क्योंकि जब घर खरीदार किस्तें या बकाया रकम देने में मजबूर होता है तो बिल्डर उस पर जुर्माना लगाता है और भुगतान करने को बाध्य करता है, लेकिन बिल्डर समय पर घर का पजेशन यानी कब्जा ना दे तो उस पर जुर्माना क्यों नहीं?
देश की सबसे बड़ी अदालत ने अपने फैसले में दो-टूक कह दिया है कि अगर समय पर घर खरीदार को करार की शर्तों के मुताबिक आशियाना नहीं मिला तो बिल्डर को पूरी जमा रकम 9 फीसदी ब्याज की रकम समेत वापस करनी होगी. बिल्डरों की मनमानी को पीठ ने अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस कहा है.
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुग्राम में अधूरे पड़े प्रोजेक्ट के घर खरीदारों की याचिका पर दिए अपने फैसले में ये भी साफ कर दिया है कि अगर बिल्डर ने प्रोजेक्ट को समय से पूरा कर के डिलीवरी नहीं कर पाए तो बिना किसी बहस या किन्तु-परंतु किए उसे घर खरीदार को पूरे पैसे वापस देने होंगे वो भी ब्याज के साथ.
डेवलपर की याचिका पर फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में बिल्डर के खिलाफ सख्त रुख दिखाते हुए कहा कि कोर्ट के आदेश का पालन नहीं करने की सूरत में घर खरीदार याचिकाकर्ता को पूरी राशि यानी 1 करोड़ 60 लाख रुपये 12 फीसदी ब्याज के साथ चुकाने होंगे. दिलचस्प बात ये है कि कोर्ट का ये फैसला डेवलपर की याचिका पर आया है जिसमें उसने राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के आदेश को चुनौती दी थी.
खरीदार मजबूर नहीं-SC
सुनवाई के दौरान बिल्डर ने घर खरीदार को ऑफर दिया था कि वह दूसरे प्रोजेक्ट में घर ले ले. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये घर खरीदार की मर्जी पर निर्भर करता है. वह बिल्डर की बात मानने को मजबूर नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने इसे उपभोक्ता कानून 1986 के तहत गलत बताया गया और इस तरह की शर्त को एग्रीमेंट में डालने को धारा 2(1) (R) के खिलाफ बताया. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ये कहा कि घर खरीदार रेरा के साथ-साथ उपभोक्ता अदालत का दरवाजा भी खटखटा सकता है
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