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बुधवार, 27 मई 2020

IAS Success Story: पहले दो प्रयासों में प्री भी पास नहीं कर पायी और तीसरे में लायीं 9वीं रैंक, ऐसे बनी गुंजन आईएएस

यूपीएससी परीक्षा के कठिनाई स्तर से हर कोई वाकिफ है, जो परीक्षा देने और सफल होने की इच्छा रखते हैं वे भली-भांति जानते हैं कि कम से कम एक से दो साल तपस्या करनी होगी, तभी सफलता मिलेगी. पर कई बार तपस्या के बावजूद निराशा ही हाथ लगती है क्योंकि शायद कहीं कोई कमी रह जाती है. ऐसा ही कुछ हुआ लखनऊ की गुंजन द्विवेदी के साथ.


 


उन्होंने ग्रेजुएशन खत्म करते ही सिविल सर्विसेस की तैयारी शुरू कर दी. चूंकि इस समय वे परीक्षा देने के लिये न्यूनतम आयु सीमा से कम थीं तो उन्होंने इस समय का बेहतर इस्तेमाल करने के लिये परीक्षा की तैयारी करना उचित समझा. दो साल भरपूर तैयारी करने के बाद उन्होंने पहली बार परीक्षा दी लेकिन न पहली बार, न ही दूसरी बार में भी उनका प्री-परीक्षा में चयन हुआ. वे हताश तो हुयीं पर अपने परिवार और साथियों के सहयोग से दोबारा उठ खड़ी हुयीं. तीसरी बार में उन्होंने सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुये न केवल सफलता पायी बल्कि टॉप टेन में भी शामिल हो गयीं. गुंजन की कहानी उन कैंडिडेट्स के लिये प्रेरणास्त्रोत है जो खूब मेहतन के बावजूद सफल न होने पर निराशा के समंदर में डूब जाते हैं क्योंकि इस परीक्षा में सफलता का दूसरा नाम ही निरंतरता है.


 


बचपन से सिविल सर्विसेस में जाने की इच्छा थी –


 


गुंजन के पिताजी रिटायर्ड आईपीएस ऑफिसर हैं और बड़ी बहन भी इनकम टैक्स ऑफिसर हैं, ऐसे में उन्हें बचपन से ही इन सर्विसेस की पूरी जानकारी थी और यह पता था कि कैसे इस क्षेत्र में जाकर समाज के एक बड़े तबके के लिये काम किया जा सकता है. इन वजहों से उनका रुझान बचपन से ही यूपीएससी की तरफ हो गया. कक्षा 12 के बाद जब कैरियर चुनने की बारी आयी तो उन्होंने बकायदा रिसर्च करके और यूपीएससी के हिसाब से प्लान करके ग्रेजुएशन के लिये विषय चुना. उनकी बड़ी बहन जोकि यूपीएससी की ही तैयारी कर रही थी, उनसे भी गुंजन को बहुत मदद मिली. इसी क्रम में उन्होंने दिल्ली के दौलत राम कॉलेज से पॉलिटिकल साइंस ऑनर्स में डिग्री ली. उनकी उम्र इस समय 21 साल थी तो उन्होंने यूपीएससी की तैयारी का रुख किया. पोस्टग्रेजुएशन उन्होंने नहीं किया और ग्रेजुएशन के तीनों साल बहुत अच्छे से दिमाग में यूपीएससी परीक्षा को रखते हुये जमकर पढ़ाई की. 2014 में ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने अपना पहला अटेम्पट 2016 में दिया, फिर 2017 में. दोनों में ही वे प्री तक भी नहीं पहुंची. 2018 में उन्होंने 9वीं रैंक हासिल की और पिछली सारी असफलताओं को धो डाला.


 


गलतियों से सीखा –


 


गुंजन ने एक साक्षात्कार में बताया कि मैंने अपने जीवन के चार साल देने के बाद भी जब प्री तक का मुंह नहीं देखा तो एक बार निराशा तो हुयी पर उनका परिवार और उनके दोस्त इतना ज्यादा सहयोग करते थे और सकारात्मक सोच रखने पर जोर देते थे कि वे बहुत देर असफलता का शोक नहीं मनाती थीं. अपनी पुरानी कमियों से सीखते हुये वे दोबारा तैयारी में जुट जाती थीं. यहां तक की तीसरी बार जब उन्होंने परीक्षा पास कर ली तब भी वह परिणाम आने के पहले अपने चौथे प्रयास की तैयारी में जुट गयी थीं और दो महीने से प्री के लिये पढ़ रही थीं. बात साफ है उन्होंने तय कर लिया था कि चाहे जो हो, चाहे जितनी बार असफल हों पर करना तो यूपीएससी ही है. कम से कम तब तक नहीं रुकना जब तक एक भी मौका बाकी है. ऐसी हिम्मत और जुनूनू के आगे सफलता भी कब तक दूर भटकती, आखिर आ ही गिरी गुंजन की झोली में. परिणाम आने पर उन्हें खुद नहीं यकीन हुआ कि वे यह रैंक ला सकती हैं.



घर पर ही करी तैयारी –


 


गुंजन ने अपनी तैयारी के लिये किसी प्रकार की कोई कोचिंग नहीं ली केवल 6 या 7 महीने के लिये उन्होंने एक बार जीएस की कोचिंग ज्वॉइन की थी. वहां मिलने वाले एनुअल नोट्स की सहायता से आगे उन्होंने खुद ही सब तैयारी की. वो बेसिक्स क्लियर करने पर बहुत जोर देती हैं. सबसे पहले उन्होंने खुद एनसीईआरटी की कक्षा 6 से 12 की सारी किताबें पढ़ डालीं उसके बाद लक्ष्मीकांत और स्पेक्ट्रम आदि पर आयीं जिनके लिये वे साफ सलाह देती हैं कि कतई शॉर्टकट ढूंढ़ने की कोशिश न करें. उनका मानना है कि करेंट अफेयर्स आदि को लेकर तो आप अपने अनुसार नोट्स बना सकते हैं पर बाकी सिलेबस को पूरी तरह पढ़ें शॉर्टकट न तलाशें. हालांकि कुछ हिस्से अगर आपको बिलकुल भी समझ नहीं आते तो उन्हें छोड़ सकते हैं.


 


ऑनलाइन खूब कंटेंट उपलब्ध है –


 


गुंजन कहती हैं कि अब समय काफी बदल चुका है. ऑनलाइन खूब मैटीरियल है जिसकी सहायता से आप तैयारी कर सकते हैं, फिर चाहे वो मेन्स की तैयारी हो या साक्षात्कार की. बस ऑनलाइन सामग्री के लिये जाते समय ध्यान न भटकायें. रोज अखबार पढ़ें और न्यूज देखें. जो पहले सफलता हासिल कर चुके हैं, उनसे मिलें, उनसे उनके अनुभव पूछें. अपने विवेक के हिसाब से सिलेबस को ठीक से समझ लें और मनचाही किताबें इकट्ठी करके बस तैयारी करने बैठ जायें क्योंकि अंततः आपको ही पढ़ना है और अपने लिये ही पढ़ना है. जहां तक असफलताओं का सवाल है तो वह सफलता के रास्ते में आने वाली बाधा मात्र हैं पर इरादे अटल और विश्वास मजबूत हो तो कोई चुनौती कठिन नहीं.


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