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मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

लॉकडाउन के दौरान वेतन देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों को पूरा वेतन देने के सरकारी निर्देश पर केन्द्र सरकार से जवाब मांगा है। हालांकि कोर्ट ने याचिका पर केन्द्र को कोई औपचारिक नोटिस जारी नहीं किया है। मामले पर दो सप्ताह बाद फिर सुनवाई होगी।


लुधियाना हैंड टूल्स एसोसिएशन व कुछ अन्य लोगों ने याचिका दाखिल कर निजी कंपनियों को लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों को पूरा वेतन देने के केन्द्र सरकार के 29 मार्च के आदेश को चुनौती दी है और कोर्ट से यह आदेश रद करने की मांग की है।


सोमवार को न्यायमूर्ति एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस संबंध में दाखिल कुल तीन याचिकाओं पर सरकार को औपचारिक नोटिस जारी किये बगैर मामले पर दो सप्ताह में जवाब देने को कहा और सुनवाई दो सप्ताह के लिए टाल दी।



लुधियाना हैंन्ड टूल्स एसोसिएशन ने याचिका में कहा है कि डिजास्टर मैनेजमेंट कानून के तहत केन्द्र सरकार द्वारा निजी प्रतिष्ठानों को पूरा वेतन देने का आदेश जारी करना गलत है। इससे संविधान में मिले व्यवसाय करने व बराबरी आदि अधिकारों का हनन होता है। याचिका में डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट 2005 की धारा 10(2)(आइ) की वैधानिकता को चुनौती देते हुए कोर्ट से केन्द्र सरकार का गत 29 मार्च का आदेश रद करने की मांग की गई है। इस आदेश में केन्द्र सरकार ने निजी प्रतिष्ठानों को लाकडाउन के दौरान कर्मचारियों को पूरा वेतन देने का आदेश दिया है।


गृह मंत्रालय से 29 मार्च को जारी इस आदेश में सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों से यह भी कहा गया कि आदेश का उलंलघन करने वालों पर कार्रवाई की जाए। इसके बाद 30 मार्च को श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने सभी क्षेत्रीय लेबर कमिश्नर को एडवाइजरी जारी की कि लाकडाउन के कारण बंद हो गए प्रतिष्ठानों के सभी कर्मचारी इस दौरान ड्यूटी पर माने जाएंगे। और सभी निजी और सरकारी प्रतिष्ठानों को सलाह दी जाती है कि वे अपने यहां के कर्मचारियों को न तो नौकरी से निकालेंगे और न ही उनका वेतन काटेंगे। इतना ही नहीं इसमें अस्थाई और संविदा कर्मचारी भी शामिल माने गए।


याचिका में कहा गया है कि सरकार का गत 29 मार्च का आदेश संविधान के तहत प्राप्त बराबरी, व्यवसाय चलाने की आजादी अनुच्छेद 14 व 19(1)(जी) का उल्लंघन करता है। साथ ही यह आदेश संविधान के अनुच्छेद 265 और 300ए का भी उल्लंघन करता है। याचिका मे कानूनी सवाल उठाते हुए कहा गया है कि क्या डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट 2005 केन्द्र सरकार को यह आदेश देने का अधिकार देता है कि वह निजी प्रतिष्ठानों को आपदा के दौरान अपने कर्मचारियों को पूरा वेतन देने का आदेश दे। क्या सरकार ने बिना ताकिर्क वर्गीकरण के सोचे समझे बगैर मनमाने ढंग से यह आदेश नहीं जारी कर दिया। क्या डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के तहत भारत सरकार निजी प्रतिष्ठानों को पूरा वेतन देने का आदेश दे सकती है? जबकि ऐसी ही स्थिति पर इंडस्टि्रयल डिस्प्यूट एक्ट 1948 में 50 फीसद वेतन देने का प्रावधान किया गया है।


क्या सरकार ने निजी प्रतिष्ठानों की लाकडाउन के दौरान आथिर्क स्थिति पर विचार किये बगैर जल्दबाजी में यह आदेश नही जारी कर दिया। क्या कर्मचारी वर्ग के हितों का ध्यान रखते हुए सरकार सारा बोझ नियोक्ताओं पर डाल सकती है जबकि नियोक्ता भी लाकडाउन के चलते भारी नुकसान मे चल रहे हों। याचिका में और भी कई कानूनी आधार दिये गए हैं।


इसके अलावा सोमवार को 11 छोटी कंपनियों ने नयी याचिका दाखिल कर पूरा वेतन देने के आदेश को चुनौती दी है। साथ ही वेतन में कमी करने की इजाजत मांगी है। हालांकि यह याचिका अभी सुनवाई पर नहीं आई है।


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