जब से देश में नया व्हीकल एक्ट लागू हुआ है. तब से अफरातफरी का माहौल. कहीं गाड़ी की कीमत से ज़्यादा का चालान काटा जा रहा है. तो कहीं चालान कटने से नाराज़ लोग अपनी गाड़ियों में आग लगा रहे हैं. तो कहीं किसी को चालान की रकम भरने में दो-दो महीने की तनख्वाह चली जा रही है. मगर पूरा देश तब सन्न रह गया जब मौत के इस चालान की खबर आई. नोएडा-गाज़ियाबाद रोड पर एक ट्रैफिक पुलिस वाले ने 35 साल के एक शख्स का ऐसा चालान काटा कि ठीक उसी जगह उसकी जान चली गई.
पहले ये क्या कम थे. जो अब सरकार ने इन्हें चालान के नाम पर लोगों को लूटने का लाइसेंस भी दे दिया. अब तो ऐसा मालूम पड़ता है कि सड़क के सरताज यही हैं जिसे मन किया रोक लिया. जिसे चाहा चालान के नाम पर हड़काने लगे. धमकाने लगे. मनमाने नियम कानून बताकर चालान की रसीदें पकड़ाने लगे. जितने की लोगों की गाड़ियां नहीं उससे ज़्यादा के चालान देशभर में काटे जाने लगे. डर गए लोग, सच में डर गए. जो पूरे कागज़ात लेकर भी गाड़ी की ड्राइविंग सीट पर बैठ रहे हैं. उनके भी दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहे हैं. सिर्फ इस बात का खौफ है कि कहीं चालान ना कट जाए.
ये खौफ इस कदर तारी है कि सड़क पर ट्रैफिक पुलिस वालों को देखकर ही लोग दिल पकड़कर बैठ जा रहे हैं. और गाड़ियों को रोक रहे ये पुलिसवाले अगर किसी गाड़ी पर हाथ रख दें तो उसकी हालत ही खराब हुई जा रही है. गाज़ियाबाद और नोएडा को मिलाने वाली एक रोड पर जब एक पुलिसवाले ने शर्मा जी के बेटे की इस गाड़ी पर डंडा मारा तो वो इस खौफ में आ गया कि ना जाने उससे क्या गलती हो गई. और तो और UP16-AC-0290 नंबर की गाड़ी को रोककर तो बाकायदा इस कदर हड़काया गया, जैसे गाड़ी में मुसाफिर नहीं आतंकी बैठे हों.
ड्राइविंग सीट पर बैठे मूलचंद शर्मा के बेटे गौरव का तो हलक ही सूख गया. लगा पता नहीं अब ये पुलिस जाने क्या करेगा. अभी बात कर ही रहे थे कि अचानक सीने में दर्द उठ्ठा. दिल पर हाथ गया. और कदमों ने जिस्म को उठाने से इनकार कर दिया. गौरव घुटनों के बल ज़मीन पर आ गए. दिल का दौरा पड़ा था. सांसें रुक गईं थी. एक बेबस बाप बदहवास था. ज़मीन पर पड़े अपने बेटे को उठाए. या सदमे में आ गई अपनी पत्नी को संभाले.
बेदिल ट्रैफिक पुलिसवाला ज़मीन पर पड़े गौरव को उठाने के बजाए गाड़ी की तस्वीरें खींचता जा रहा था. इस मंज़र को देखकर भी कोई रहागीर मदद को राज़ी ना हुआ. बेटा सड़क पर ऐड़ियां रगड़ रहा था. और बाप कभी ज़मीन पर पड़े बेटे को उठाता. कभी बेसुध पड़ी पत्नी को संभालता. जैसे तैसे एक शख्स मदद को राज़ी हुआ. उसकी मदद से बाप ने बेटे को गाड़ी में रखा. मां उसके सीने को सहला रही थी.
बदहवास बाप को समझ नहीं आ रहा था कि किधर जाए. उस मददगार शख्स ने गाड़ी संभाली और गौरव को लेकर नज़दीक के फोर्टिस हॉस्पिटल ले गया. हॉस्पिटल के एमरजेंसी वार्ड ने गौरव की हालत देखकर भर्ती करने से इनकार कर दिया. सेक्टर 62 से गाड़ी को कैलाश अस्पताल की तरफ मोड़ा गया. जहां 10 से 20 मिनट तक जांच करने के बाद उन्हें बेटे के इस दुनिया से गुज़र जाने की इत्तेला की गई. बाप के पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई.
आर्मी स्कूल से रिटायर हुए मूलचंद शर्मा को समझ ही नहीं आया कि पल भर में उनके साथ क्या हो गया. अच्छे भले बेटे ने उनकी आंखों से सामने दम तोड़ दिया. महज़ 35 साल का उनका बेटा जिसकी अभी कुछ सालों पहले ही शादी हुई थी. 5 साल की मासूम बच्ची है उसकी. मगर एक बाप के लिए अभी सबसे बड़ा मसला बाकी था. उसे ये खबर उस बेटे की मां को देनी थी. जिसने उसे अपनी कोख में रखा. पाला-पोसा बड़ा किया.
ये खबर उसे अभी उसकी पत्नी को भी देनी थी. जो उसके वापस घर लौटने की राह तक रही थी. और ये खबर उसे अभी उस मासूम बच्ची को भी देनी था जो उसके सीने पर सर रखे बिना सोती नहीं है. हाय ये एक बाप किस किस को ये कलेजा चाक कर देने वाली खबर सुनाए. किस किस को संभाले. किस किस को दिलासा दे. कैसे वो खुद को भी संभाले. यकीनन बहुत तड़पा होगा वो बाप. मगर अपने सारे ग़म को इसने अपने सीने में जज़्ब कर लिया. क्योंकि इसे अब बहुत लंबा सफर तय करना है. इन बूढे कांधों पर इसे अपने बेटे की पत्नी और बच्चों की ज़िम्मेदारी उठानी है.
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