असम एनआरसी की फाइनल लिस्ट आज जारी हो गई है. उससे पहले राज्य में सुरक्षा के चाक-चौबंद इंतजाम किए गए हैं. इस लिस्ट से 41 लाख लोगों पर बाहर होने का खतरा मंडरा रहा है. लोगों को इतनी टेंशन है कि उन्होंने खाना-पीना छोड़ दिया है और रातों की नींद भी हराम हो गई है. आइए आपको बताते हैं कि अब तक इस मामले में कब क्या हुआ.
साल 2005: तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अगुआई में केंद्र सरकार, असम सरकार और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) के बीच त्रिपक्षीय बैठक हुई, जिसमें तय किया गया कि असम समझौते में किए गए वादों को पूरा करने के लिए NRC को अपडेट करने की दिशा में कदम उठाए जाने चाहिए. इसके लिए तौर-तरीकों को केंद्र ने असम सरकार की सलाह से स्वीकार किया.
जुलाई 2009: असम पब्लिक वर्क्स नाम की एक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. उनका कहना था कि उन प्रवासियों के नाम जिन्हें दस्तावेज नहीं किया गया है उन्हें मतदाता सूची से हटा दिया जाना चाहिए. एनजीओ ने कोर्ट से दरख्वास्त करते हुए कहा कि एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए. यह पहली बार था, जब एनआरसी मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा.
अगस्त 2013: असम पब्लिक वर्क्स की याचिका पर सुनवाई शुरू हुई.
दिसंबर 2013: सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि एनआरसी को अपडेट करने का काम शुरू होना चाहिए.
फरवरी 2015: हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने एनआरसी को अपडेट करने का आदेश 2013 में दिया था, ताकि बोनाफाइड नागरिकों और घुसपैठियों की पहचान हो सके. इस मामले पर काम फरवरी 2015 में शुरू हुआ.
31 दिसंबर 2017: सरकार ने एनआरसी का पहला ड्राफ्ट पब्लिश किया.
30 जुलाई 2018: एनआरसी का दूसरा ड्राफ्ट असम सरकार ने जारी किया. इसके लिए 3.29 करोड़ लोगों ने अप्लाई किया था, जिसमें से 2.89 करोड़ लोगों को वास्तविक नागरिक माना गया. ड्राफ्ट में 40 लाख लोगों को बाहर रखा गया.
31 दिसंबर 2018: एनआरसी की फाइनल लिस्ट जारी करने की यह आखिरी दिन था. लेकिन सरकार डेडलाइन को हासिल नहीं कर पाई.
26 जून 2019: बहिष्करण सूची का अतिरिक्त ड्राफ्ट पेश किया गया. इस लिस्ट में 1,02,462 नाम थे, जिसके बाद ड्राफ्ट से बाहर रखी गई संख्या 41, 10, 169 तक पहुंच गई.
31 जुलाई 2019: सरकार को एनआरसी की आखिरी लिस्ट जारी करनी थी. लेकिन डेडलाइन को एक महीने आगे बढ़ा दी गई.
31 अगस्त 2019: नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन असम की फाइनल लिस्ट जारी.
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